वोटबैंक की राजनीति
कहते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है| लेकिन ठीक उसी तरह अथवा वैसी ही परिस्थितियों में दोहराता है यह कहना उचित नहीं होगा| यह बात आज इसलिए कह नहीं पड़ रही है क्योंकि लोभी राजनीतिक पार्टियों ने पिछले 70 साल से वोट बैंक की राजनीति करते-करते राष्ट्र को एक बार फिर से 1947 की परिस्थितियों में लाकर खड़ा कर दिया है| अपने निजी फायदे और सुविधा के लिए देश की एकता और अखंडता का विभाजन कर रहे है| वोट बैंक की राजनीति विभदों को बढ़ावा देती है| ऐसा लगता है सत्ता ही आज राजनीति में जीवन मूल्य बन गई है| अगर भारत की लोक शक्ति सतर्क तथा सक्षम ना रही और उसने राजनीतिज्ञों पर अपना अंकुश न लगाया, तो राष्ट्र फिर उसी प्रकार के संकट में फंस सकता है जिस प्रकार के संकट का सामना 1947 में करना पड़ा| राजनीतिक दलों ने सत्ता लोभ के चलते भारत की आजादी से पहले से ही एक वर्ग विशेष के लोगों को लुभाने और उनका पक्ष रखने के लिए देश का विभाजन कर दिया और विभाजन के बाद आज तक उसी वर्ग विशेष के लोगों का दिल जीतने और उनका पक्ष लेते लेते वोट की राजनीति को जन्म दिया | वही वोट बैंक आज राजनीतिक दलों की मजबूरी बन चुकी है| वोट की राजनीति के चलते ही जम्मू कश्मीर में देखने को मिलता है की पिछले 70 सालों में केंद्र की सरकार में रहे अलग-अलग राजनीतिक दलों ने हमेशा जम्मू और लद्दाख से पक्षपात किया और कश्मीर का पेट भरते रहे और वर्ग विशेष का दिल जीतने की कोशिश करते रहे| आज इसी वोट की राजनीति के कारण पूरे देश में बहुत से कश्मीर बन चुके हैं| अगर राजनीतिक दलों में इस बात की चेतना समय रहते जागृत ना हुई तो राष्ट्र में आने वाले कुछ वर्षों में फिर से विभाजन वाले हालात जन्म ले सकते हैं | भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां अल्पसंख्यक समुदाय बहुसंख्यक समुदाय पर अत्याचार करता है और बहुसंख्यक समुदाय उसे चुपचाप से सहन करता है, जहां तक की सरकार की बात करें तो वह भी अल्पसंख्यक समुदाय का पक्ष लेती है| सरकारों का एक वर्ग विशेष का पक्ष लेना यह बात नई नहीं है अपनी भारत यात्रा के बाद लिखी एक पुस्तक में रैमजे मैकडोनाल्ड ने कहा है “ मुसलमान जब घर की छतों पर से प्रहार करने का नारा लगाते हैं तो उन्हें चेतावनी भी नहीं दी जाती, हिंदू जब अपनी शिकायतों को फुसफुसाते हैं तो उन्हें अपराधी मान लिया जाता है| आज फिर से वही स्थितियां हो चुकी हैं| 2013 में जब मुजफ्फरनगर दंगों में सबसे पहली हत्या हुई चौधरी सोहन वीर जी की, उस वक्त की तत्कालीन सरकार ने ना सिर्फ छुपाया बल्कि ,उनके ही बेटे को जेल में डाल दिया| अभी हाल ही में जब 24 अक्टूबर को भारत-पाक के खेल के उपरांत जब पंजाब के बाबा फरीद शिक्षा संस्थान में पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों ने देश विरोधी नारे लगाए और इन्हीं छात्रों के विरोध में बिहार के कुछ छात्रों ने कश्मीरी छात्रों का विरोध किया तो बिहार के 4 छात्रों को छात्रावास से निकाल दिया | 4 अप्रैल 2016 को श्रीनगर एनआईटी के छात्रों को अपना तिरंगा लेकर कैंपस के अंदर शांति पूर्ण ढंग से भारत माता की जय और वंदे मातरम कहते हुए घूम रहे थे क्योंकि उसी रात से एक-दो दिन पहले भारत वेस्टइंडीज से T20 चैंपियनशिप में हारा था तो मुस्लिम छात्रों ने भारत मुर्दाबाद के नारे लगाए थे | इसके खिलाफ एनआईटी के राष्ट्रवादी छात्रों ने तिरंगा हाथ में लेकर देश विरोधी नारों का शांतिपूर्ण ढंग से विरोध किया और कैंपस में घूम के उन्होंने भारत माता की जय के नारे और वंदे मातरम के नारे लगाए और राष्ट्रीय गान गाया, तो तब की तत्कालीन जम्मू-कश्मीर सरकार (पीडीपी बीजेपी गठबंधन सरकार) ने कैंपस के अंदर पुलिस को भेजा और जो छात्र भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे और राष्ट्रगान जिन्होंने गाया उनको भेड़ियों की तरह पुलिस के द्वारा पीटा गया दर्जनों छात्र जख्मी हुए , कम से कम 6 छात्रों को इस तरह से मारा गया की उनको दूर बड़गांव के भरझूला में बोन एंड ज्वाइंट हॉस्पिटल में दाखिल करवाना पड़ा | और जो छात्र अपनी जान बचाकर अपने छात्रावास के कमरों में गए उनको घसीट के बाहर निकाल कर पीटा गया फिर इन लोगों ने कैंपस छोड़ दिया और कक्षाओं का बहिष्कार किया कैंपस से निकल गए, उनके पास जम्मू वापस जाने के लिए कुछ भी नहीं था पैसे नहीं थे तैयारी नहीं थी तो विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने जो जम्मू के थे उन्होंने उनको बोला कि आप आइए आप हमारे पास रहिए जब तक आप घर जाते और जितने दिन आपको लगते हैं यहां से घर जाते हुए इतने दिन आप हमारे पास रुकिए | उस वक्त के तत्कालीन उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह जी ने विद्यार्थी परिषद छात्रों को फटकार लगाई कि आपने एनआईटी के छात्रों को यहां क्यों घुसने दिया और उन पर दबाव बनाया और एनआईटी के छात्रों को रातों-रात वहां से निकालना पड़ा कहने का भाव अर्थ यह है कि जो देश के साथ खड़े हैं उन को दबाया जा रहा है और जो देश के विरोध में उन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है | इसके पीछे की भी मंशा है एक वर्ग विशेष की सहानुभूति प्राप्त करना |
इस प्रकार का व्यवहार जब सरकार का रहेगा तो निश्चित ही राष्ट्र विरोधी शक्तियों को बल मिलेगा | 2014 के
बाद भारतीय जनता दल के सत्ता में आने से राष्ट्र हित के लिए बहुत से कार्य हुए हैं | लेकिन
अभी और बहुत से कार्य करने की आवश्यकता है| सब
कुछ राजनीतिक दल पर छोड़ दिया जाए यह भी उचित नहीं होगा| इसके
लिए जनता को भी जागृत होना पड़ेगा| जनता
को शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन के माध्यम से सरकार को कार्य करने की स्वीकृति देनी होगी| आंदोलनों
से सरकार को बताना होगा कि राष्ट्र हित में कार्य किए जाएं इसके लिए जनता सरकार के साथ है| वैसे तो देश में बेरोजगारी, महंगाई अनपढ़ता जैसी बहुत सारी समस्याएं हैं लेकिन इन समस्याओं का तभी सुचारू रूप से दूर किया जा सकता है जब देश में शांति बनी रहे, राष्ट्र की एकता और अखंडता बनी रहे| अंत
में इतना ही कहना चाहूंगा की जनता को अपनी आवाज उठानी होगी देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए इसे बचाए रखने के लिए, हर
एक उस कार्य का उस नीति का खुलकर विरोध करना होगा जो राष्ट्र
की एकता और अखंडता को तोड़ने का काम करती हो |
लेखक
रॉकी खजूरिया
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