महाशिवरात्रि का महत्व और महिमा
हिंदू धर्म में शिवरात्रि का बहुत महत्व माना जाता है वैसे तो शिवरात्रि साल के हर महीने में होती है, लेकिन फाल्गुन मास में आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है और इसे हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। लोगों का मानना है कि महाशिवरात्रि वाले दिन ही शिव शक्ति का मिलन हुआ था अथवा भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। महाशिवरात्रि को लेकर बहुत सी मान्यताएं हैं और पौराणिक कथाएं हैं। पहली कथा के अनुसार सृष्टि के उत्पत्ति के समय भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा दोनों के बीच में श्रेष्ठता को लेकर एक विवाद हो जाता है तभी एक अग्नि स्तंभ प्रकट होता है और आकाशवाणी होती है कि जो इसके आदि और अंत का पता लगा लेगा, श्रेष्ठ माना जाएगा लेकिन लाखों वर्श प्रयास करने के बाद भी सृष्टि रचनाकार ब्रह्मा और सृष्टि के पालनहार विष्णु जी आदि और अंत का पता नहीं लगा सके, अतः हार कर भगवान शिव से प्रार्थना करते हुए अग्नि स्तंभ से रहस्य को बताने के लिए कहा। इस पर भगवान शिव ने कहा की आप दोनों ही श्रेष्ठ है परंतु मैं आदि और अंत से परे परब्रह्मा हुं। भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने पूजा अर्चना की। यह घटना का दिन फाल्गुन मास की चतुर्दशी थी। भगवान शिव ने कहा जो भी इस दिन मेरा व्रत पूजा-अर्चना करेगा, उसके सभी कष्ट दूर तथा मनोकामनाएं पूरी होंगी। उसी दिन से ही इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। एक दूसरी मान्यता के अनुसार फाल्गुन मास की चतुर्दशी के दिन ही भगवान शिव 64 स्थानों पर शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए हैं जिनमें से सिर्फ 12 अभी तक पता है, जिन्हें ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। एक तीसरी कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव मां पार्वती का विवाह हुआ था और भगवान शिव ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया था, इस कारण से भी इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के बाद ही भारत में भगवान शिव के जितने भी प्रमुख स्थान है उनकी यात्राएं आरंभ हो जाती है। जैसेः बाबा अमरनाथ यात्रा(जम्मूकश्मीर ), बुड्ढा अमरनाथ की यात्रा(जम्मूकश्मीर ), केदारनाथ की यात्रा(उत्तराखंड ), मणिमहेश की यात्रा (हिमाचल प्रदेश ) इत्यादि।
महाशिवरात्रि के दिन शिवखोड़ी नामक स्थान पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रहती है यहां लोगों के द्वारा यात्रियों के लिए तरह-तरह के लंगर की व्यवस्था की जाती है, ताकि यात्री लंगर ग्रहण करके भगवान भोलेनाथ की यात्रा का आनंद ले सकें यह स्थान जम्मू शहर से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पहाड़ों के बीच में स्थित शिवखोड़ी बहुत ही सुंदर गुफा है। माना जाता है कि इस अद्भुत गुफा में भगवान शिव अपने पूरे परिवार के साथ वास करते हैं और यह भी मान्यता है कि गुफा का रास्ता सीधा स्वर्ग लोक को जाता है क्योंकि गुफा के भीतर स्वर्ग लोक को जाने वाली सिढ़ीयां भी बनी हुई हैं। वैसे तो आपने बाबा अमरनाथ का नाम तो सुना ही होगा, लेकिन भगवान शिव का स्थान शिवखोड़ी का भी एक बहुत महत्व है। यूं तो साल भर यहां कभी भी दर्शन किए जा सकते हैं, लेकिन महाशिवरात्रि के मौके पर यहाँ प्रतिवर्ष दो लाख श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान के दर्शन किये तो आपका स्वर्ग जाना तय है और साथ ही इस गुफा का दूसरा छोर सीधा बाबा अमरनाथ गुफा की ओर निकलता है। इस गुफा के भीतर प्राकृतिक रूप से 4 फिट का शिवलिंग बना हुआ है। इस शिवलिंग के ऊपर अमृत की बूंदें, यानि गंगा जल की बूंदें लगातार टपकती हैं। प्राचीन कथाओं के अनुसार पहले इस शिवलिंग पर दूध की धारा लगातार गिरती थी, क्योंकि कामधेनु गाय के थन भी इन शिवलिंग के ऊपर ही बने हुए हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार शिवखोड़ी में भगवान शिव ने भस्मासुर को भस्म किया था। भस्मासुर ने भगवान शिव की आराधना कर भोलेनाथ को प्रसन्न किया। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उस को यह वरदान दिया कि, वह जिसके सर पर हाथ रख देगा वह भस्म हो जाएगा। यह सुनकर वह अहंकारी हो गया और उसने सोचा क्यों ना भगवान भोलेनाथ के सर के ऊपर हाथ रखा जाए और भगवान शिव को भस्म किया जाए। जब भगवान शिव ने उनके मन की बात जान ली तो फिर वहां से भागना ही ठीक समझा। भस्मासुर भी उनका पीछा करने लगा, भागते हुए भगवान शिव ने शिवखोड़ी की पहाड़ियों में त्रिशूल लगा कर गुफा बनाई ताकि भस्मासुर से बचा जा सके। भगवान शिव ने जब देखा कि वह उनका पीछा किये जा रहा है तो उन्होंने मोहिनी रूप धारण किया और गुफा के बाहर आकर नृत्य करने लगे जब भस्मासुर ने अंत्यत सुंदर स्त्री को नृत्य करते हुए देखा तो वह भी प्रेम में मोहित होकर उनके साथ नृत्य करने लगा, नृत्य करते वक्त जैसे ही भगवान शिव ने अपना हाथ अपने सिर पर रखा, भस्मासुर ने उनका अनुसरण करते हुए अपना हाथ अपने सर पर रख दिया और वही भस्म हो गया। इस गुफा में भगवान शिव अर्ध नारिश्वर रूप के रूप में विराजमान हैं। शिवखोड़ी के आधार शिविर रंसू से जम्मू, कटड़ा, उधमपुर या फिर अन्य किसी भी स्थान से किसी भी वाहन के जरिये पहुंचा जा सकता है। आधार शिविर से गुफा तक लगभग चार किलोमीटर की सरल चढ़ाई वाली पैदल यात्रा है। इसके अलावा घोड़ा पालकी की भी सेवा उपलब्ध है। श्री शिवखोड़ी श्राइन बोर्ड रंसू की तरफ से पैदल यात्रा के दौरान सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करायी गयी हैं। यहाँ पानी की व्यवस्था के साथ ही शौचालय भी बनाए गए हैं। गुफा के बाहर लॉकर की भी व्यवस्था की गई है। अगर आप कहीं जम्मू कश्मीर में पर्यटन के लिए जा रहे हैं तो शिवखोड़ी जाकर भगवान भोलेनाथ के इस अति पवित्र स्थान का दर्शन कर अपने जीवन को सफल बनाएं।
हर हर महादेव
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